आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद के लिखे 'सत्य प्रकाश' नाम की
किताब में लिखे गए कुछ हिस्सों पर रामपाल ने आपत्तियां उठाईं. इसके बाद 2006 में उनके समर्थकों और आर्य समाज कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष हुआ.
आर्य
समाज कार्यकर्ताओं की मांग थी कि रामपाल को करौंथा आश्रम से बाहर निकला
जाए. इस संघर्ष में आर्य समाज के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई थी और 59 लोग घायल हुए थे.
रामपाल के ख़िलाफ़ हत्या और हत्या की कोशिश का मामला
दर्ज किया गया था. इस मामले में वो कुछ वक़्त जेल में रहे थे जिसके बाद
2008 में रोहतक अदालत ने उन्हें ज़मानत दे दी. बाद में उन्होंने हिसार के
बरवाला में आश्रम बनाया.
राम रहीम इंसान के मामले में सज़ा के बाद हरियाणा के सिसरा में डेरा
समर्थकों की हिंसा को ध्यान में रखते हुए हिसार प्रशासन ने सुनवाई के
मद्देनज़र सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए हैं.
मामले की गंभीरता को देखते हुए हिसार पुलिस के आईजी संजय कुमार, डीआईजी सतीश बलान और छह अन्य
अधीक्षक सहित 1500 पुलिस और पैरा मिलिटरी जवान तैनात किए गए हैं. शहर में 37 जगहों पर नाके लगाए गए हैं.
हिसार के डेप्युटी कमिश्नर अशोक
कुमार मीना का कहना है कि स्थिति काबू में है, लेकिन यह एक हाई प्रोफ़ाइल
केस है, ऐसे में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं ताकि किसी भी तरह की
स्थिति से निपटा जा सके. र्षीय रामपाल का जन्म आठ सितंबर, 1951 को सोनीपत ज़िले के एक जाट परिवार में हुआ था.
सतलोक
आश्रम के प्रवक्ता चांद राठी के मुताबिक़ जब वे बड़े हुए तो हनुमान भक्त रामपाल गांव-गांव घूमकर भजन गाया करते थे. इससे उन्हें काफ़ी प्रसिद्धी
हासिल हुई.
इसके बाद 13वीं शताब्दी के संत और सुधारक कबीर की
विचारधारा को स्वीकार करके उन्होंने रोहतक ज़िले के करौंथा गांव में अपने
आश्रम की नींव रखी. इस प्रयास में उन्हें उनके आम लोगों से लेकर वीआईपी
भक्तों का समर्थन मिला.
राठी कहते हैं कि रामपाल सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर काम करते थे लेकिन आश्रम शुरू करने से पहले उन्होंने अपनी ये नौकरी छोड़ दी.
आर्य समाज प्रतिनिधि समाज के अध्यक्ष रामपाल आर्य कहते हैं कि रामपाल ने
जानबूझकर स्वामी दयानंद के नाम का इस्तेमाल किया ताकि वे जाट बाहुल्य
ज़िलों में लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकें.
इन जाट बाहुल्य ज़िलों में एक बड़ी आबादी आर्य समाज से जुड़ी हुई है.
रामपाल आर्य कहते हैं, "हम इसका विरोध करते हैं और साल 2006 में आर्य समाज समर्थकों और रामपाल समर्थकों में एक झड़प सामने आई थी."
वह कहते हैं कि रामपाल अपने समर्थकों को धर्म के नाम पर बेवकूफ़ बनाकर और स्वामी दयानंद से जुड़ा विवाद खड़ा करके सफल हुए थे.